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Showing posts from October, 2017

Amazing ways to develop great focus - Scientifically proved

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Developing great focus requires a combination of mental and physical strategies. Here are some scientifically-backed ways to improve your focus: 1. Mindfulness meditation:  Practicing mindfulness meditation has been shown to improve attention and focus.  This type of meditation involves focusing your attention on the present moment and letting go of distracting thoughts. 2. Exercise:   Regular exercise has been shown to improve cognitive function, including attention and focus. Exercise increases blood flow to the brain, which can help improve mental clarity. 3. Sleep:  Getting enough sleep is crucial for maintaining good cognitive function, including focus. Lack of sleep can impair attention and concentration, so aim for 7-9 hours of sleep per night. 4. Breaks and rest:  Taking breaks and allowing for rest periods can improve focus and productivity. Research has shown that taking short breaks can help improve concentration and prevent burnout. 5. Mindful breathing:   Focusing on your

कार्बन के अपररूप

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कार्बन के मुख्य रूप से 2 प्रकार के अपररूप होते है जो निम्न प्रकार है - क्रिस्टलीय अपररूप अक्रिस्टलीय अपररूप क्रिस्टलीय अपररूप भी मुख्यतः 3 प्रकार के होते है - हीरा ग्रेफाइट फुलरीन अक्रिस्टलीय अपररूप मुख्यतः निम्नं प्रकार का होता है - कोल कोक काष्ठ चारकोल जन्तु चारकोल काजल गैस कार्बन क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय अपररूप में मुख्य अंतर - क्रिस्टलीय अपररूप अक्रिस्टलीय अपररूप वह अपररूप जिसमे कार्बन परमाणु एक निश्चित व्यवस्था में व्यवस्थित रहते हुए एक निश्चित ज्यामिति से निश्चित बंध कोण का निर्माण करते है , क्रिस्टलीय अपररूप कहलाते है . कार्बन के वह अपररूप जिनमे कोई निश्चित ज्यामिति और बंध कोण नहीं पाया जाता है , अक्रिस्टलीय अपररूप कहलाते है . हीरा - हीरे में प्रत्येक कार्बन परमाणु , अन्य चार कार्बन परमाणुओं के साथ बंधित होकर ठोस त्रिआयामी चतुश्फल्कीय संरचना बनाता है . ये कार्बन का सबसे शुद्ध रूप है . दो C - C बंध के मध्य दुरी 1.54 एंग्सट्राम होती

कार्बन के यौगिको का IUPAC नामकरण

कार्बोनिक यौगिको का नामकरण करने के लिए मुख्य रूप से 3 तरह की पद्धति है - रूढ़ पद्धति व्युत्पन्न पद्धति IUPAC पद्धति IUPAC  पद्धति में किये गए नामकरण पुरे विश्व में मान्य होते है .  IUPAC  (  International Union Of Pure And Applied Chemistry  )एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है . IUPAC  पद्धति में नामकरण के लिए हमें निम्न बाते ध्यान में रखनी होती है जैसे कि - यौगिक में कार्बन परमाणुओं की संख्या तथा क्रमश IUPAC द्वारा निर्धारित अनुलग्न तथा पूर्वलग्न यौगिक में उपस्थित प्रतिस्थापी का IUPAC नाम तथा प्रतिस्थापियो की संख्या यौगिक में उपस्थित एकल बंध , द्विबंध या त्रिबंध की संख्या      पूर्वलग्न का निर्धारण -      अणु में कार्बन परमाणुओं की संख्या पूर्वलग्न            1 मेथ            2 एथ            3 प्रोप            4 ब्युट            5 पेन्ट            6 हेक्स            7 सेप्ट            8

कार्बन परमाणु

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                कार्बन परमाणु के कुछ मुख्य बिंदु -  आवर्त सारणी में कार्बन परमाणु का क्रमांक 6 होता है . कार्बन का परमाणु द्रव्यमान 12 होता है . इसे C से प्रदर्शित करते है . C परमाणु की ज्यामिति समचतुश्फलाकीय होती है तथा प्रत्येक फलक त्रिभुजाकार होता है . C परमाणु का इलेक्ट्रोनिक विन्यास 1s ² 2s ² 2p ² होता है अर्थात C परमाणु के बहयातम कोश में 4 इलेक्ट्रान पाए जाते है . अपने बहयातम कोश में 8 इलेक्ट्रान पुरे करने के लिए C परमाणु , दुसरे परमाणुओं के साथ अभिक्रिया करके इलेक्ट्रान साझा कर लेता है . C परमाणु अपना अष्टक पूरा करने के लिए , किसी दुसरे तत्व के परमाणु के साथ एकल बांध , द्विबंध  या त्रिबंध द्वारा जुड़कर इलेक्ट्रान साझा करता है . C परमाणुओं की हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ अभिक्रिया करके बनाए गए यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते है . किसी यौगिक में दो कार्बन परमाणु से जुड़े बंधो के बीच का कोण  109 °28 ' होता है .

आवर्त सारणी में तत्वों के धात्विक तथा अधात्विक गुण

-> किसी तत्व के परमाणु द्वारा इलेक्ट्रान त्यागकर धनायन बनाने की प्रवत्ति को उस तत्व का धात्विक       गुण कहते है . -> वर्ग 1 के तत्व सबसे अधिक विद्युत् धनि तत्व होते है . क्योकि ये आसानी से इलेक्ट्रान त्यागकर   धनायन बना लेते है . वर्ग 1 के तत्व आवर्त सारणी में सर्वाधिक धात्विक गुण दर्शाते है . -> किसी तत्व के परमाणु द्वारा इलेक्ट्रान ग्रहण करके ऋनायन बनाने की प्रवत्ति को उस तत्व का   अधात्विक   गुण कहते है . -> वर्ग 17 के तत्व ( हैलोजन ) आसानी से इलेक्ट्रान ग्रहण करके ऋनायन बना लेते है , इस कारण   सर्वाधिक अधात्विक गुण दर्शाते है . -> आवर्त सारणी में ऊपर से नीचे जाने पर धात्विक गुणों में कमी होती है . -> आवर्त सारणी में बाये से दाये जाने पर अधात्विक गुणों में कमी पाई जाती है . 

अष्टक का नियम

-> जिस तरह से प्रत्येक व्यक्ति अपना स्थायित्व प्राप्त करने की कोशिश करता है , उसी तरह से आवर्त सारणी       में प्रदर्शित किया गया प्रत्येक तत्व भी स्थायित्व प्राप्त करने की कोशिश करता है .  -> कोई भी तत्व केवल तभी स्थायी कहलाता है , जब उस तत्व के बहयातम कोश में 8 इलेक्ट्रान हो जाते है .  -> कोई भी तत्व अपने बहयातम कोश में 8 इलेक्ट्रान पुरे करने के लिए या तो इलेक्ट्रान त्यागते है , या ग्रहण         करते है या फिर दुसरे परमाणु के साथ साझा करते है .  -> आवर्त सारणी में प्रदर्शित 18 वा वर्ग में अक्रिय गैसों को रखा गया है . अक्रिया गैस सदैव अपनी स्थायी             अवस्था में पाई जाती है . जैसे कि हाइड्रोजन H , हीलियम He , नियोन Ne , आर्गन Ar , क्रिप्टोन Kr ,               जिनोन Xe , रेडोंन Rn .

तत्वों की संयोजकता

किसी भी तत्व के बहयातम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रान की संख्या को ही उस तत्व की संयोजकता कहते है . या हम कह सकते है की " परमाणुओ  किसी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने पर एक परमाणु द्वारा त्यागे गए या ग्रहण किये गए या साझा किये गए इलेक्ट्रान की संख्या को उस तत्व की संयोजकता कहते है . " जैसे कि - कैल्शियम Ca की संयोजकता 2 होती है , इसलिए इसे  Ca 2+ से दर्शाते है .  कुछ तत्व परिवर्तनशील संयोजकता भी दर्शाते है . जैसे कि फेरम Fe ( लोहा ) +2 तथा +3 दर्शाता है . जिसे क्रमश फेरस तथा फेरिक कहते है .

आवर्त सारणी के गुणों में आवर्तिता

यदि आवर्त सारणी में ऊपर से नीचे या बाए से दाए की तरफ जाये , तो तत्वों के भोतिक तथा रासायनिक गुणों में एक निश्चित क्रम दिखाई देता है . तत्वों के गुणों में ये परिवर्तन उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के कारण होता है . तत्वों के गुणों में इस क्रमिक परिवर्तन को ही आवर्तिता कहते है .  आवर्तिता निम्न गुणों में पाई पाई जाती है -  1. परमाणु आकार  2. आयनिक त्रिज्या  3. आयनन एन्थैल्पी  4. इलेक्ट्रान लब्धि एन्थैल्पी  5. विद्युत ऋणता 

आधुनिक आवर्त सारणी

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मैंडलीफ ने जब आवर्त सारणी का निर्माण किया था जब परमाणु में इलेक्ट्रान , प्रोटोन , न्यूट्रॉन  की व्यवस्था की जानकारी नहीं दी गई थी . इसीलिए मैंडलीफ ने परमाणु भर को ही आवर्त सारणी के लिए मुख्य आधार माना था . 20 वी सदी के प्रारंभ में इलेक्ट्रान , प्रोटोन , न्यूट्रॉन की जानकारी के बाद सन 1913 में हेनरी मोजले ने आवर्त सारणी को फिर से व्यवस्थित किया . उन्होंने पाया की परमाणु भार की तुलना में , परमाणु क्रमांक की सहायता से तत्वों को ज्यादा आसानी से प्रदर्शित किया जा सकता है . इस प्रकार मोजले ने संशोधित आवर्त नियम दिया जसके अनुसार , " तत्वों के भोतिक तथा रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमंको के आवर्ती फलन होते है . " इसे ही आधुनिक आवर्त नियम कहते है . आधुनिक आवर्त सारणी को निम्न बिन्दुओ से समझा जा सकता है - -> आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु क्रमंको के आधार पर रखा गया है . -> परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटोनो की संख्या परमाणु क्रमांक के सामान होती है . -> आवर्त सारणी स्वयं ही तत्वों के electronic विन्यास को बताती है . ->

नील्स बोर की परिकल्पना

सन 1913 में नील्स बोर ने हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम तथा संरचना को समझाने के लिए मॉडल बनाया .  ये मॉडल निम्नलिखित परिकल्पनाओ पर आधारित था - परमाणु के केंद्र में नाभिक होता है , जो कि धनावेशित होता है . इलेक्ट्रान . नाभिक के चारो और निश्चित वृत्ताकार पथ में गति करते है जिन्हें कक्षा , कोश या उर्जा स्तर कहते है . ये कक्षाए नाभिक के चारो और संकेंद्रित होती है तथा n से दर्शाते है . इनका मान पूर्णांक 1,2,3,4 , 5 .... होता है जिन्हें क्रमश K , L , M , N , O ....... से प्रदर्शित करते है . प्रत्येक n का मान बढ़ने पर उर्जा स्तर बढ़ता है . इलेक्ट्रान का कोणीय संवेग ( mvr ) , nh / 2 Π के बराबर होता है अर्थात  mvr = nh/2 Π . बोर के अनुसार एक निश्चित कक्षा में चक्कर लगाने पर उर्जा में परिवर्तन नहीं होता है . इलेक्ट्रान जब उर्जा का अवशोषण करता है तो उत्तेजित होकर उच्च उर्जा स्तर में चला जाता है तथा जब उर्जा का उत्सर्जन करता है तो उर्जा कम हो जाने से निम्न उर्जा स्तर में चला जाता है . परमाणु में इलेक्ट्रान के उर्जा

रदरफोर्ड का स्वर्ण पत्र प्रयोग

अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने सन 1911 में एक बहुत ही पतली 100nm मोटाई की सोने की झिल्ली पर अल्फा ( α -कण , हीलियम के नाभिक ) कणों की बोछआर की . झिल्ली के चारो तरफ जिंक सलफाईड का पर्दा किया तथा अब α -कणों की बमबारी करने से इस पर चमक उत्पन्न हुई . इस प्रकार बमबारी की गई α -कणों की दिशा ज्ञात की गई . रदरफोर्ड के स्वर्ण पत्र प्रयोग से प्राप्त प्रेक्षण  - अधिकाँश α -कण सोने की झिल्ली से टकराकर बिना मुड़े ही सीधे निकल गए . बहुत कम कण किसी कोण पर विचलित हुए . लगभग 20,000 में से एक α -कण 180 डिग्री पर मुड गया . रदरफोर्ड के निष्कर्ष - परमाणु का अधिकांश भाग रिक्त तथा आवेशहीन होता है , इसलिए α -कण सीधे निकल गए . कुछ α -कण विचलित हुए अर्थात उन पर प्रतिकर्षण लगा . अतः परमाणु का समस्त धनावेश परमाणु के नाभिक में बताया . परमाणु का व्यास 10ˉ¹° m बताई गई . मुख्य रूप से रदरफोर्ड मॉडल - परमाणु का सम्पूर्ण द्रव्यमान और आवेश उसके नाभिक में केन्द्रित होता है . परमाणु का अधिकाँश भाग रिक्त होता है तथा परमाणु नाभिक के चारो और निश्चित वृत्ताकार

थोमसन का परमाणु मॉडल

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इस समय तक इलेक्ट्रान और प्रोटोन की खोज हो चुकी थी . अब इलेक्ट्रान और प्रोटोन की आतंरिक संरचना को समझाने के लिए मॉडल्स बनाये जा रहे थे , उन्ही में से एक है 1898 में दिया गया थोमसन का परमाणु मॉडल . थम्सन के अनुसार परमाणु को एक तरबूज की तरह बताया गया था . तरबूज के बीजो की तुलना इलेक्ट्रान से तथा तरबूज के लाल भाग की तुलना प्रोटोनो ( धनावेश ) से की गई . इस मॉडल को थोमसन का प्लम - पुडिंग का मॉडल भी कहते है . इस में बताया गया की परमाणु में धनावेश तथा ऋणावेश की मात्र सामान होती है तथा परमाणु विद्युत् रूप से उदासीन होता है . इस सिद्धांत से परमाणु का विद्युत् रूप से उदासीन होना तो सिद्ध हो गया लेकिन आगे ये रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल को नहीं समझा सका और एतिहासिक ही बन कर रह गया .

परमाणु तथा डाल्टन का सिद्धांत

परमाणु - किसी भी तत्व या यौगिक का सबसे छोटा वह कण जिसे और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकता है , परमाणु कहलाता है . भारत के प्राचीन दार्शनिक महर्षि कणाद ने बताया था की किसी भी पदार्थ को टुकडो में विभाजित करने पर एक सुक्ष्तम अविभाजित कण परमाणु प्राप्त होता है . डाल्टन का परमाणु सिद्धांत - सन 1808 में एक टीचर जॉन डाल्टन ने परमाणु व्याख्या करने के लिए एक सिद्धांत दिया . ये सिद्धांत रासायनिक संयोजन , द्रव्यमान संरक्षण एवं निश्चित अनुपात के नियमो के आधार पर दिया गया . इसके मुख्य बिंदु है - प्रत्येक पदार्थ छोटे छोटे कानो से मिलकर बना हे , जिन्हें परमाणु कहते है . परमाणु अविभाज्य कण होते है . एक ही तत्व के सभी परमाणु , भार , आकार व रासायनिक गुणधर्मो में समान होते है . भिन्न भिन्न तत्वों के परमाणु आकार , भार , रासायनिक गुणधर्म अलग-अलग होते है . अलग अलग तत्वों के परमाणु सदैव एक अनुपात में मिलकर यौगिक बनाते है . रासायनिक अभिक्रियाओ में परमाणु केवल पुनर्व्यवस्थित होते है . अर्थात न तो अभिक्रिया में भाग लेते है और न ही अभिक्रिया में नष्ट ह